Tuesday, April 8, 2014

परमानन्द आर्य की क़लम से


Parmanand Arya:

 

यह जो पूंजी का प्यादा है......

इसका एक कुटिल इरादा है....

 

पहले यह हमको बाँटेगा,

फिर किसी एक को छाँटेगा

दुश्मन उसको ठहराएगा,

आपस में हमें लड़ाएगा,

फिर वन्दे मातरम गाएगा,

दम अपना फूलता जाएगा,

 

इसके प्रपंच-छल-ज़ुल्मों की,

सीमा ना कोई मर्यादा है

यह जो पूंजी का प्यादा है

इसका एक ख़ास इरादा है.

 

मन्दिर-मस्जिद का होगा शोर

हल्ले में फिर गुम होगा चोर,

भाई बनकर सब एक रहें

इसको ना कभी गवारा था,

एक दौर अन्धेरा वो भी था,

जब इसने शूद्र संहारा था.

 

क्षत-विक्षत कर मानवता को,

इसने पहले भी मारा था

इसकी वादे-दावे इसके,

सब ओढ़ा हुआ लबादा है.

यह जो पूंजी का प्यादा है,

इसका एक खास इरादा है .

 

जिसने लाखों घर फूँक दिए,

वह बात विकास की करता है

है ख़ून से तर दामन जिसका,

वो आज अमन पर मरता है

सरमाएदार के हाथों का,

यह महँगा एक खिलौना है

 

इसके कहने से क्या होगा

होना है वही जो होना है

इसका इक मक़सद है विनाश,

इससे कुछ कम ना ज़्यादा है

यह जो पूंजी का प्यादा है,

इसका एक कुटिल इरादा है....

 

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः

 

आतताई.......

अब कहाँ होते हैं

झाग उफनते

मदमाते घोड़े

ख़ून में नहाई तलवारें,

ख़ून सनी पोशाकें,

शत्रु-मुण्डों की गूंथी गई माला

और अंगारे भरे कटोरे सी दहकती आंखें।

 

अब तो,

मन की कालिख

आंखों की नफ़रत,

वाणी के ज़हर को छिपाकर

जतन से- ओढ़ी गई विनम्रता के दम्भ में,

मुस्कराता...

चमकती-जगमगाती,

रंग-बिरंगी रौशनी में नहाता...

हेलीकॉप्टर से उतरता है..

आतताई....

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