राजेन्द्र राजन की एक कविता
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
तब वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे ...
जब तुम मरीज़ की नब्ज़ टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम ग़रीब आदमी को ढाँढ़स बंधा रहे थे
वे ग़रीबों को उजाड़ने की नई योजनाएँ बना रहे थे
जब तुम ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं और तुम देशद्रोही क़रार दिए गए
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आँग सान सू की हमारे लिए श्याओबो
तुम्हारी जय हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
जब तुम एक बच्चे को दवा पिला रहे थे
तब वे गुलछर्रे उड़ा रहे थे ...
जब तुम मरीज़ की नब्ज़ टटोल रहे थे
वे तिजोरियां खोल रहे थे
जब तुम ग़रीब आदमी को ढाँढ़स बंधा रहे थे
वे ग़रीबों को उजाड़ने की नई योजनाएँ बना रहे थे
जब तुम ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे
वे संविधान में सेंध लगा रहे थे
वे देशभक्त हैं क्योंकि वे व्यवस्था के हथियारों से लैस हैं और तुम देशद्रोही क़रार दिए गए
जिन्होंने उन्नीस सौ चौरासी किया
और जिन्होंने उसे गुजरात में दोहराया
जिन्होंने भोपाल गैस कांड किया
और जो लाखों टन अनाज गोदामों में सड़ाते रहे
उनका कुछ नहीं बिगड़ा
और तुम गुनहगार ठहरा दिए गए
लेकिन उदास मत हो
तुम अकेले नहीं हो विनायक सेन
तुम हो हमारे आँग सान सू की हमारे लिए श्याओबो
तुम्हारी जय हो