गर्व से कहो - हम भस्मासुर हैं
धर्मेन्द्र चतुर्वेदी
मैंने बचपन में सोचा था कि पढ़ूँगा वैदिक दर्शन के बारे में,
जानूँगा क्या होता है साररूप होना,
क्या होता है अद्वैत दर्शन का तत्वमसि हो जाना
सोचा था कि क्या है कृष्ण में जो खींचे रखता था रसखान को अपनी ओर,
क्यों मीरा इतनी पागल थी,
और क्यूँ लोग कबीर के इतने दीवाने होते हैं?
मैंने चाहा कि जानूँ सूफ़ी संतों के बारे में,
क्यूँ उनके चेहरे तेज से भरपूर होते हैं,
कैसे पाते हैं वो ईश्वर प्रेम के ज़रिये?
मैंने चाहा कि जानूँ बुद्ध को,
कौन सा जादू था उनके वचनों में,
उनके चेहरे में,
जो उन्हें देखकर लोग बन जाते थे उनके भक्त,
जो रात भर में उनके अनुयायी समंदर पार भी बन जाते थे
ठीक उसी समय जब मैं ये सब जानने ही वाला था,
उन्होंने मुझे रोका और बताया
कि वैदिक दर्शन जानने के पहले ज़रूरी है
जानो देवी-देवताओं की संख्या,
जानो देश भर में कितने राम मंदिर हैं
और कितनों के बगल में मस्जिद हैं;
और कबीर को जानना इतना इम्पोर्टेंट नहीं है
जितना महाराणा प्रताप को जानना,
परशुराम को जानना,
और यह जानना कि छत्रपति शिवाजी कितने वीर थे,
और कैसे औरंगज़ेब को नाकों चने चबाने पड़े थे
उन्होंने बताया कि
तुम्हारे बाबा के बाबा के मौसा को
उनके ही गाँव के एक आदमी ने मार डाला था
और उस आदमी का मज़हब तुम्हारे सूफ़ी संत के मज़हब से मेल खाता है,
इसलिए वह सूफ़ी संत ख़ूनी है
बुद्ध को उन्होंने विष्णु का दसवाँ अवतार बताया।
"और चूँकि राम भी थे विष्णु के अवतार,
इसलिए राम और विष्णु एक ही हैं,
और कोई ज़रूरत नहीं रह जाती तब बुद्ध को जानने की",
उन्होंने कहा।
इतने सब ज्ञान के बाद उन्होंने मुझे आज्ञा दी
"जाओ मेरे धर्म-रक्षक, देशभक्त, वीर,
और इस बेवक़ूफ दुनिया को भी बतलाओ
असली और नक़ली का भेद"।
तब से मैं जहाँ भी जाता हूँ,
वहाँ फट जाता हूँ
और पैदा करता हूँ
अपने ही जैसे पचास भस्मासुर
"ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है"
ऐसा उनका कहना है।
धर्मेन्द्र चतुर्वेदी
मैंने बचपन में सोचा था कि पढ़ूँगा वैदिक दर्शन के बारे में,
जानूँगा क्या होता है साररूप होना,
क्या होता है अद्वैत दर्शन का तत्वमसि हो जाना
सोचा था कि क्या है कृष्ण में जो खींचे रखता था रसखान को अपनी ओर,
क्यों मीरा इतनी पागल थी,
और क्यूँ लोग कबीर के इतने दीवाने होते हैं?
मैंने चाहा कि जानूँ सूफ़ी संतों के बारे में,
क्यूँ उनके चेहरे तेज से भरपूर होते हैं,
कैसे पाते हैं वो ईश्वर प्रेम के ज़रिये?
मैंने चाहा कि जानूँ बुद्ध को,
कौन सा जादू था उनके वचनों में,
उनके चेहरे में,
जो उन्हें देखकर लोग बन जाते थे उनके भक्त,
जो रात भर में उनके अनुयायी समंदर पार भी बन जाते थे
ठीक उसी समय जब मैं ये सब जानने ही वाला था,
उन्होंने मुझे रोका और बताया
कि वैदिक दर्शन जानने के पहले ज़रूरी है
जानो देवी-देवताओं की संख्या,
जानो देश भर में कितने राम मंदिर हैं
और कितनों के बगल में मस्जिद हैं;
और कबीर को जानना इतना इम्पोर्टेंट नहीं है
जितना महाराणा प्रताप को जानना,
परशुराम को जानना,
और यह जानना कि छत्रपति शिवाजी कितने वीर थे,
और कैसे औरंगज़ेब को नाकों चने चबाने पड़े थे
उन्होंने बताया कि
तुम्हारे बाबा के बाबा के मौसा को
उनके ही गाँव के एक आदमी ने मार डाला था
और उस आदमी का मज़हब तुम्हारे सूफ़ी संत के मज़हब से मेल खाता है,
इसलिए वह सूफ़ी संत ख़ूनी है
बुद्ध को उन्होंने विष्णु का दसवाँ अवतार बताया।
"और चूँकि राम भी थे विष्णु के अवतार,
इसलिए राम और विष्णु एक ही हैं,
और कोई ज़रूरत नहीं रह जाती तब बुद्ध को जानने की",
उन्होंने कहा।
इतने सब ज्ञान के बाद उन्होंने मुझे आज्ञा दी
"जाओ मेरे धर्म-रक्षक, देशभक्त, वीर,
और इस बेवक़ूफ दुनिया को भी बतलाओ
असली और नक़ली का भेद"।
तब से मैं जहाँ भी जाता हूँ,
वहाँ फट जाता हूँ
और पैदा करता हूँ
अपने ही जैसे पचास भस्मासुर
"ऐसा करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है"
ऐसा उनका कहना है।
1 comment:
beautiful poem. great.
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